दश्त में झोंके हवा के आ गए
रास्ता वो शहर का बतला गए
धूप के जितने भी पैकर मिल सके
हम सलीबों पर उन्हें लटका गए
ज़िन्दगी-ओ-मौत में क्या फ़र्क़ है
कुछ मनाज़िर हमको ये समझा गए
संग-रेज़ों से ज़रा ये पूछिये
शीशमहलों से ये क्यों घबरा गए
ये तो वो बादल हैं देखो गौर से
बूँद-भर पानी को जो तरसा गए
रौशनी की खोज “माँझी” क्या करें
रास हमको जब अँधेरे आ गए
-देवेन्द्र माँझी
9810793186
शब्दार्थ–1. दश्त में=जंगल में, 2. सलीबों पर=सूली पर, 3. ज़िन्दगी-ओ-मौत=जीवन और मृत्यु, 4. मनाज़िर=दृश्य, 5. संग-रेज़ों से=पत्थर के टुकड़ों से।